Tuesday, April 14, 2009

या खुदा तेरी रीत निराली है


दिन सफ़ेद रात काली है
चंदा सूरज की पीली लाली है

आधी हरी आधी नीली है
यहाँ जिन्दगी हरियाली है

बच्चे सो चुके निपटा के
माँ का मगर पेट खाली है

पुलिस ने मारा है एनकाउंटर करके
लोगो ने भी कह दिया मवाली है

बच्चा भी अजीब जिद में था
वो पुरनम नहीं उसकी थाली है

जूठे सो रहे जीत के चैन से
या खुदा तेरी रीत निराली है

फसने ही वाले है सब कहीं
ज़िन्दगी मछुआरे की जाली है

झील का गुमाँ सिर्फ दूर से है
पास जाओ देखो वो नाली है

11 comments:

  1. achhe kahan hai badhaayee swikaaren....


    arsh

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  2. गहरी बातों का और सच्चाई का समावेश है इस रचना में!

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  3. जिंदगी के करीब से गुजरती एकखूबसूरत गजल।
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    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  4. bahut khoob likha aapne.... acha laga padhke!

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  5. bahu khubsurat.
    agar aap chahe to prerna se bhari koi kavita mere blog k lie bheje.
    shamikh.faraz@gmail.com
    www.salaamznindadili.blogspot.com

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  6. जिंदगी को देखने का आपका नजरिया बडी खूबसूरती से गजल के रूप में उतर आया है।

    पहली बार आपके ब्‍लॉग पर आयाहूं, पर लगा कि आना सार्थक हो गया।

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    SBAI TSALIIM

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  7. kuch baat hai is simplicity me...aur soch bhi bahut achhi hai

    www.pyasasajal.blogspot.com

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  8. Aap sabhi ka hosla afzaai karne ke liye bahut bahut shukriya.....

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  9. अब नयी पोस्ट पर टिप्पणी कैसे करूँ, वाक़ई उसमें निहित ख़्याल बहुत ख़ूबसूरत हैं

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  10. wah kya baat hai....its too nic yaar.......

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