Wednesday, May 13, 2009
साया
इक शाम सा साया है
बड़ी दूर से आया है
गमने भले ना सही हमने
रिश्ता-ए-गम खूब निभाया है
थी सही इक धुंधली सी मंजिल
ना दिखी कहीं ना ही उसे पाया है
अँधेरा छटेगा नहीं यूंही सोचके
चराग हम ने खूब जलाया है
सुकून-ओ-शान से रहते थे हरदम
हमारा भी चैन किसीने चुराया है
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