दिन सफ़ेद रात काली है
चंदा सूरज की पीली लाली है
आधी हरी आधी नीली है
यहाँ जिन्दगी हरियाली है
बच्चे सो चुके निपटा के
माँ का मगर पेट खाली है
पुलिस ने मारा है एनकाउंटर करके
लोगो ने भी कह दिया मवाली है
बच्चा भी अजीब जिद में था
वो पुरनम नहीं उसकी थाली है
जूठे सो रहे जीत के चैन से
या खुदा तेरी रीत निराली है
फसने ही वाले है सब कहीं
ज़िन्दगी मछुआरे की जाली है
झील का गुमाँ सिर्फ दूर से है
पास जाओ देखो वो नाली है
achhe kahan hai badhaayee swikaaren....
ReplyDeletearsh
गहरी बातों का और सच्चाई का समावेश है इस रचना में!
ReplyDeleteजिंदगी के करीब से गुजरती एकखूबसूरत गजल।
ReplyDelete----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
सुन्दर रचना है।
ReplyDeletebahut khoob likha aapne.... acha laga padhke!
ReplyDeletebahu khubsurat.
ReplyDeleteagar aap chahe to prerna se bhari koi kavita mere blog k lie bheje.
shamikh.faraz@gmail.com
www.salaamznindadili.blogspot.com
जिंदगी को देखने का आपका नजरिया बडी खूबसूरती से गजल के रूप में उतर आया है।
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आयाहूं, पर लगा कि आना सार्थक हो गया।
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SBAI TSALIIM
kuch baat hai is simplicity me...aur soch bhi bahut achhi hai
ReplyDeletewww.pyasasajal.blogspot.com
Aap sabhi ka hosla afzaai karne ke liye bahut bahut shukriya.....
ReplyDeleteअब नयी पोस्ट पर टिप्पणी कैसे करूँ, वाक़ई उसमें निहित ख़्याल बहुत ख़ूबसूरत हैं
ReplyDeletewah kya baat hai....its too nic yaar.......
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