
दिल रहा धुआँ
माहोल हुआ धुआँ
आँखे कुछ ठंडी हुई
अश्क़ बना धुआँ
घर से जो उठा
दीवारें चढ़ा धुआँ
शाम भी धुंधली हुई, जब
दिन ढला धुआँ
जीने के शिमोजर है
दिल दुआ धुआँ
माँ ने जब सदका किया
बनी बला धुआँ
खूब सजा दिल का रंग
उसकी कला धुआँ
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धुँआ उड़ा था
बहोत, कुछ
बू भी
अनजानी सी
लोग जानते
तो बचा ही लेते
सुना है
कल रात
बस्ती मे
एक औरत
जला दी गई है
बहुत गहराई है सोच में!
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना.
ReplyDeleteभाव सुन्दर