Wednesday, February 25, 2009

वक़्त

1.
वक़्त 
ना ज़ेर ना ज़बर
सिर्फ ढाई हुरूफ
सिर्फ एक हर्फ

पर ये भी
बड़ा माहिर है
अपने खेल का
गहरी से गहरी 
यादों को
निगल जाया करता है

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2.
मैने
       जितना 
गहरा झाँका
अपने अंदर
उतनी ही
मै खोती
      चली गई
खुदको उसकी 
यादों मे

मेरे अंदर
वक़्त कुछ
सुस्त पड़ा रहता है

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3.
वक़्त का ही तो 
वो शेर था 
जिसके 
एक मिसरे मे 
तेरा नाम था 
और दूसरे मे मेरा 

और आज वक़्त ही है 
जो मेरा नाम तो 
कबका चबा चुका है 
पर 
तेरा नाम 
वो अबतक 
नही निगल पाया 

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1 comment:

  1. हम आपकी शायिरी के दीवाने हो जायेंगे!

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    गुलाबी कोंपलें

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